( Navratri 2012 is Only for 8 DAYS , 3rd and 4th are together on 18th )
||सूरा सम्पूर्ण कलशं रुधिरा प्लुतमेव च |
दधानां हस्त पदमयां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ||
नवरात्र के चौथे दिन आदिशक्ति मां दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा की पूजा की जाती है. अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण मां दुर्गा के इस स्वरुप को कूष्मांडा के नाम से पुकारा जाता है. दुर्गा पूजा के चौथे दिन भगवती श्री कूष्मांडा के पूजन से भक्त को अनाहत चक्र जाग्रति की सिद्धियां प्राप्त होती है. अपने दैवीय स्वरुप में मां कूष्मांडा बाघ पर सवार हैं, इनके मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट है और अष्टभुजाधारी होने के कारण इनके हाथों में कमल, सुदर्शन, चक्र, गदा, धनुष-बाण, अक्षतमाला, कमंडल और कलश सुशोभित हैं. भगवती कूष्मांडा की अराधना से श्रद्धालु रोग, शोक और विनाश से मुक्त होकर आयु, यश, बल और बुद्धि को प्राप्त करता है. श्रद्धावान भक्तों में मान्यता है कि यदि कोई सच्चे मन से माता के शरण को ग्रहण करता है तो मां कूष्मांडा उसे आधियों-व्याधियों से विमुक्त करके सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है. मान्यतानुसार नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा के पूजन के बाद भक्तों को तेजस्वी महिलाओं को बुलाकर उन्हें भोजन कराना चाहिए और भेंट स्वरुप फल और सौभाग्य के सामान देना चाहिए. इससे माता भक्त पर प्रसन्न रहती है और हर समय उसकी सहायता करती है.
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